कविता

मुझे शिकायत है

मुझे शिकायत है 

हर किसी से ही नहीं अपने आप से भी

क्योंकि यही मेरी आदत है,

शायद इससे मुझे सूकून का अहसास होता है,

सुख चैन की नींद आती है

और भोजन भी अच्छे से पच जाता है।

शिकायत तो मुझे माँ बाप भाई बहनों रिश्तेदारों ही नहीं

अपनी पत्नी और बच्चों से भी है,

पर ये सब मेरी शिकायतों पर ध्यान ही कहाँ देते हैं

उल्टे मुझे शिकायतों का बीमार कहते हैं,

इसलिए मैं अपना कोटा बाहर ही पूरा करता हूँ,

कम से कम अपनी इज्जत तो महफूज रखता हूँ।

बाहर शिकायतों का अपना ही सुख है

उधार न देने वालों की औरों से शिकायत 

मोहल्ले के छोटे बच्चों के शोरगुल से

सार्वजनिक जगहों पर गंदगी फैलाने वालों से

बिजली पानी बरबाद करने वालों से,

जलकल और बिजली विभाग से,

सार्वजनिक सुविधाओं की अव्यवस्थाओं से

सरकारी तंत्र की नाकामियों से शिकायत है,

लचर कानून व्यवस्था और बढ़ते भ्रष्टाचार से

शासन प्रशासन की नीतियों और क्रियान्वयन से

बढ़ती असंवेदनशीलता और झूठी अफवाहों से

जाति धर्म, मंदिर मस्जिद और कट्टरता की आड़ में

मतभेद, आपसी वैमनस्य और जहर घोलने वालों से,

राजनीति की आड़ में भाली भाली जनता को

आये दिन बेवकूफ बनाने वालों से शिकायत है।

मुझे शिकायत है मुफ्तखोरों, विश्वासघातियों से

बढ़ती बेरोजगारी, आरक्षण और नशाखोरी से,

ढोंगी बाबाओं और भोली भाली जनता के गुमराह होने से

युवाओं के गुमराह होकर अपराधी बनने से

अपराधी माफियाओं के राजनैतिक लिबास से।

देश के दुश्मनों और देशद्रोहियों से

अमन, शांति के दुश्मनों से

राष्ट्र, समाज को गुमराह करने वालों से

संविधान का उपहास उड़ाने, 

कानून का मजाक बनाने वालों से

मर्यादा को तार तार करने वालों से

न्याय के लंबे इंतजार और बढ़ते मुकदमों की बोझ से।

पर मेरी शिकायतों का अंत नहीं है

शिकायतों का इतिहास भूगोल लिख सकता हूँ,

पर शिकायतों के सिवा कोई हल भी तो नहीं है,

क्योंकि हम आप शिकायतों के शहँशाह जो हैं।

शिकायतें करते, शिकायतें सुनते 

और अपना समय काटते हुए जीते हैं

अपने आप की शिकायतों पर

हम ध्यान ही कब, कहाँ देते हैं?

कारण भी है कि शिकायतों के बिना

हम आप जी भी तो नहीं सकते हैं

क्योंकि हम शिकायतों के गुलाम जो हो गए हैं,

शिकायतों में ही जीने और मरने के अभ्यस्त हो गए हैं,

फिर आपको हमसे इतनी शिकायत क्यों है?

शिकायतों का बोझ लेकर तो हम चल ही रहें हैं

शिकायतों के बोझ से आपको साफ साफ बचा रहे हैं

तब शिकायतें करके आखिर कौन सा गुनाह कर रहें हैं?

जो आप सब मेरे लिए भारत रत्न की

सिफारिश तक नहीं कर पा रहे हैं,

या उसके लिए भी शिकायतों का इंतजार कर रहे हैं?

जो हम बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं

आप सबको इतनी बड़ी दुविधा से बचा रहे हैं

अहसान मानिए! मुफ्त में इतना बड़ा काम 

सिर्फ और सिर्फ हम ही तो कर रहे हैं,

शिकायत, शिकायत और सिर्फ शिकायत 

आखिरकार हम कर रहे हैं। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921