कविता

उम्मीदों का शहर

उम्मीदों का शहर है मेरा ठिकाना
हर चेहरा है जहाँ पे अनजाना
फिर भी आशा की दीप जलाये
नई संसार की ओर पाँव फैलाये

गम दुःख व है परेशानी सब भारी
पर हमको है खुशियों से ही यारी
ले कर चले हैं एक नई तराणा
लिख देंगें हम इतिहास का अफसाना

आगे बढ़ना है तन मन की फ़ितरत
पुरे होगें जीवन की सब हसरत
सफलता की मंजिल पे पताका लहरायें
हँसी खुशी से सब अब मंजिल को पाये

जब जग ना बने तेरा कभी कहीं सहारा
अपने काँधे पे रख अपनी मुकाम प्यारा
जिसने ढुँढा है वो ही मोती पाया है
बैठा जो मूरख वो दुःख की काया है

— उदय किशार साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088