गीतिका/ग़ज़ल

कैसे लगाते छुपकर घात देख ली

आँखों ही आँखों में रात देख ली
कैसे बदल जाती है बात देख ली

सामने से सामना होता नही है अब
कैसे लगाते छुपकर घात देख ली

जिनके गढ़े यहाँ कसीदे जा चुके
जिनको मिली शह उनकी मात देख ली

हर बज्म में यहाँ जिनके चर्चे हैं शामिल
इस “राज” ने उनकी सौगात देख ली

राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782