कैसे लगाते छुपकर घात देख ली
आँखों ही आँखों में रात देख ली
कैसे बदल जाती है बात देख ली
सामने से सामना होता नही है अब
कैसे लगाते छुपकर घात देख ली
जिनके गढ़े यहाँ कसीदे जा चुके
जिनको मिली शह उनकी मात देख ली
हर बज्म में यहाँ जिनके चर्चे हैं शामिल
इस “राज” ने उनकी सौगात देख ली
राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी