चूनर यहाँ बेकार हुई
बेशर्मी अब ज़ीनत बन गयी, असमत तार तार हुई
इस बेढंगी दुनियाँ में देखो , हया यहां बेजार हुई
दफ़न हो चुका अदब यहाँ, शर्मीली अब नजर नही
हवा से बातें करते गेशू , चूनर यहाँ बेकार हुई
इल्मी सारी कायनात है, जाहिल सारे चले गये
बंधन सारे जबसे टूटे, तबसे शोभा बाजार हुई
न लहर बसंती आती है, न सावन की कदर कोई
हर दिन नई फिजाओं से, गुमसुम यहाँ बहार हुई
ये मर्जी सब बिन मर्जी की, ये चकाचौंध फरेबी है
ऐसा “राज” हुआ कायम, अब डोली बिन कहार हुई
राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी