गीतिका/ग़ज़ल

चूनर यहाँ बेकार हुई

बेशर्मी अब ज़ीनत बन गयी, असमत तार तार हुई
इस बेढंगी दुनियाँ में देखो , हया यहां बेजार हुई

दफ़न हो चुका अदब यहाँ, शर्मीली अब नजर नही
हवा से बातें करते गेशू , चूनर यहाँ बेकार हुई

इल्मी सारी कायनात है, जाहिल सारे चले गये
बंधन सारे जबसे टूटे, तबसे शोभा बाजार हुई

न लहर बसंती आती है, न सावन की कदर कोई
हर दिन नई फिजाओं से, गुमसुम यहाँ बहार हुई

ये मर्जी सब बिन मर्जी की, ये चकाचौंध फरेबी है
ऐसा “राज” हुआ कायम, अब डोली बिन कहार हुई

राज कुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782