कविता

चोरी सह सीनाजोरी

चोर भाई साहब आपके माथे पर
भले ही न लिखा हो कि
आपका बाप चोर है,
मगर सच्चाई यही है कि
आपका बाप चोर ही था,
उनका अत्याचार घनघोर ही था,
प्राचीन काल से आपने
क्या क्या तरीका नहीं अपनाया है,
लूटने का तरीका बदल बदल
औरों का हिस्सा खाया है,
जिसके लिए भरपूर खौफ भी बढ़ाते हो,
वाहवाही लूटने समाधान भी सुझाते हो,
चोरी निर्बाध रूप से जारी रहे सोच
कभी अंगूठा काटते हो और कभी नंबर,
बस सिमटाने को हमें तैराते हो
तहकीकात का समंदर,
सच्चाई छुपाने झूठा इतिहास बताते हो,
चमत्कारी गाथा सुना माथा कब्जाते हो,
आपके चुराने की कला का
जब जब कोई खोलता है पोल,
तब तब बजाते हो आस्था नामक ढोल,
चोरी पकड़ी भी गई तो
एकजुट हो एक दूजे को बचाते हो,
खजाना खाली करके पुनः चपत लगाते हो,
आपका धंधा कभी नहीं होता डांवाडोल,
आप वहीं करेंगे कोई कितना भी खोले पोल।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554