प्रभु लीला
कैसी तेरी अबूझ कहानी
लगा बूझने जिसे सब कोई
तेरी यह कहानी
कोई व्रत रखे
कोई जप करे
कोई हज़ करे
कोई करे तीर्थ
कोई पहाड़ों पे जाये
कोई जंगल में धूनी जमाये
कोई गंगा नहाये
कोई जमुना
भटके तीरे तीरे
मंदिर मंदिर
तुझे न खोज पाए
तू तो बसा है घट घट
फिर तुझे क्यों न ढूंढे घट भीतर
तेरी माया तू ही जाने
तू व्याप्त घट के अंदर
पर भटकाये हम सबको
इधर उधर.