कविता

प्रभु लीला

कैसी तेरी अबूझ कहानी 

लगा बूझने जिसे सब कोई 

 तेरी यह कहानी 

कोई व्रत रखे 

कोई  जप करे 

कोई हज़ करे 

कोई करे तीर्थ 

कोई पहाड़ों पे जाये 

कोई जंगल में धूनी जमाये 

कोई गंगा नहाये 

कोई जमुना 

भटके तीरे तीरे 

मंदिर मंदिर 

तुझे न खोज पाए 

तू तो बसा है घट घट 

फिर तुझे क्यों न ढूंढे घट भीतर 

तेरी माया तू ही जाने 

तू व्याप्त घट के अंदर 

पर भटकाये हम सबको 

इधर उधर.

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020