मैं ऐसी हूँ
अपने सिद्धांतों पर जीते रहे
दकियानूसी रिवाजों से हटाते रहे
रिश्ता निभाया कभी तो दिल से
नफा नुकसान कभी सोचा न दिल से
मैं तो एक खुली किताब जैसी हूँ
अल्फाज़ कभी बदलती नहीं हूँ
मुझे देख कर ही तस्सली मत करो
कभी मेरे रूह तक तो जाया करो
मुँह से कभी कुछ बोल दिया करती हूँ
दिल किसी का दुखाया नहीं करती हूँ
— डॉ. मंजु लता