रिश्ते
“मैं ये देख रही हूँ ..धीरे-धीरे बहुत से रिश्ते तुमसे छूट गये।”
ज्योति के बात पर सत्या हँसपड़ी।
“तुम कैसे साथ हो?? “
“हमारा तो बचपन का साथ है .. जड़ से जुड़े हैं , सब सुख-दुख समझते हैं। ” ज्योति ने कन्धे पर हाथ रख कर कहा।
“और तुमने खुद ही समझा दिया, बस इतने ही और ऐसे ही रिश्तें जरुरी हैं मेरे लिए । “
“सबके लिए”। सत्या की बात से ज्योति बिल्कुल सहमत थी ।
—- साधना सिंह