कविता

सबके अंदर जात छुपा है

किसके अंदर नैतिकता और
किसके अंदर घात छुपा है,
गौर करके देख लो साथी
सबके अंदर जात छुपा है,
क्या हुआ कोई बना डॉक्टर,
या बना हो कोई कलेक्टर,
जज बन जाये या वकील,
सीने में रखता जात का कील,
नेता बन जाये या अभिनेता,
जात का रौब है हर कोई देता,
या हो कोई पढ़ाने वाला,
तन गोरा और मन हो काला,
तलवार,तिलक या तराजू वाला,
जातिवादी दिल में नहीं कहीं उजाला,
भेड़िये भूखे घूम रहे हैं
क्या पता कैसा जज्बात छुपा है,
सबके अंदर जात छुपा है,
सफेदपोश बने सब घूम रहे हैं,
जातिय अकड़ में झूम रहे हैं,
अस्पृश्यता छाती में बांधे रहते,
उच्चता का गर्व भी लादे रहते,
व्याख्या किसी बात का करना हो तो
जाति के दायरे में रह करते,
भेदभाव मिटाने की चुपड़ी बातें और
घर नहीं किसी के पांव ये धरते,
हवस न छोड़े ये कभी
प्रतिपल अय्याशी का भूखा है,
सबके अंदर जात छुपा है।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554