एकमात्र सत्य और
हर काल में बंदर ने
बिल्लियों के हिस्से की रोटी खाया है,
हर हमेशा उसी ने तराजू में तौलकर भी
अपना भी हिस्सा बनाया है,
मगर जहां में सबसे ज्यादा
सही न्यायदाता खुद को बताया है,
वह तो रमता जोगी प्राणी है,
अंदर से कर्कश बाहर मधुर वाणी है,
लोलुपता लंपटता हक छीनने की कला,
अय्यारी का उस्ताद त्वरित रुंधा गला,
जंगल की सभा में
जंगल की कसम खाता है,
अपने किये कार्यों से सबको रुलाता है,
सदियों से सताये हुए खरगोश,हिरण,
जिसमें जगाता है उम्मीद की किरण,
पर बंदर छोड़ नहीं सकता फितरत,
वक्त में दिखा देता है
अपने भीतर का नफरत,
उनके लिए खेल और
छोटे जानवरों के लिए मुसीबत है,
वन में आज भी इंसाफ के नाम पर
वो खा रहा गुलाटियां और कलाबाजियां
जो एकमात्र सत्य और हकीकत है।
— राजेन्द्र लाहिरी