गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़फ़ाओं को भुला जाता रहा हूँ
करम का वो मज़ा पाता रहा हूँ

खरोचें कम नहीं खाता रहा हूँ
हिना का ढेर पहुँचाता रहा हूँ

लिये मैं दर्द कितनी चाहतों का
मिला हूँ और मुस्काता रहा हूँ

बला की धूप में छाता लगाए
घनी ज़ुल्फ़ो! बिना छाता रहा हूँ

समुन्दर पीर का है रात पूनम
नयन से नीर छलकाता रहा हूँ

विषय कुछ भी रखा हो बोलने को
घुमाकर प्यार पर आता रहा हूँ

तुम्हारे एक मिसरे पर कही है
ग़ज़ल जो हर समय गाता रहा हूँ

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137