सावन के झूले
सावन के वो गीत कहाँ
हंसी ठिठोली अब है कहाँ
मायके में आना
सहेलियों के संग मिलना
पेड़ों पर पड़े झूलों पर
लंबी लंबी पीँग लेना
सावन के गीत गाना
अब यह नज़ारा
दिखता कहाँ
कौन सजधज के
सोलह श्रृंगार करके
हाथों में लाल हरी चूड़ियाँ
माथे पर इंगूर बिंदिया लगा
दिख रहा है इस नए ज़माने में
जहाँ हर कोई नफरत से भरा है
अब तो यह पिछड़ेपन की निशानियाँ है
फूहड़पन है लोगों की नज़र में.