अश्रुधार
किस्मत का खेल बहुत निराला होता है. शताक्षी की शादी तय ही हुई थी कि तभी बाएं पैर में बुरी तरह फ्रैक्चर हो गया. खुशियां तो काफूर होनी ही थीं! शरीर में चोट और मन में डर सबके रवैये का!
सासु मां और ननद रानी अस्पताल में मिलने भी नहीं आईं.
“अच्छा हुआ शादी से पहले ही यह कांड हो गया, वरना प्रतीक की जान की सांसत हो जाती!” चाची सास का ताना भी शताक्षी के कानों में पड़ गया था.
प्रतीक भी मिलने नहीं आया था. शायद उसे आने ही नहीं दिया गया होगा!
“क्षमा करना शताक्षी, ऑफिस के काम में ज्यादा ही व्यस्त होने के कारण एक दिन आने में देर हो गई.” प्यार से शताक्षी का हाथ थामते हुए प्रतीक की चिंतित भावभंगिमा शताक्षी से छिपी नहीं रह सकी.
“बेसब्री से तुम्हारे ठीक होने की प्रतीक्षा है. जल्दी ठीक हो जाओ तो मैं बैंड-बाजे के साथ तुम्हें घर ले चलूं!” प्रतीक की बात से हताशा की हार, आशा की अश्रुधार से धुल गई थी.
अश्रुधार शताक्षी की होने वाली सासु मां की आंखों से भी बह रही थी. शायद वह पश्चाताप की थी, जो बेटे के अस्पताल जाने का समाचार सुनकर उत्सुकतावश आ गई थीं.
— लीला तिवानी