लघुकथा

मेहमानों का बक्सा

रतनलाल सचमुच अनमोल रतन था. उसकी चमत्कृत करने वाली बातों से प्रभावित होकर मैंने रतनलाल पर पेन से 14 फुलस्केप पेजों की कहानी लिखी थी. उम्र का वार्धक्य, धन का अभाव, ढेरों चिंताएं, मन को घेरे थीं. रतन फिर भी रतन ही रहा. ठीक चार बजे बर्तन-सफाई करने आ जाता था. सारा काम करके मुझे साढ़े छह बजे स्कूल के लिए जो निकलना होता था.
बेटी की शादी के लिए उसने दिन में एक बार भोजन खाने का व्रत लिया हुआ था.
“अगले सप्ताह सोमवार को मैं छुट्टी करूंगा.” एक सप्ताह पहले ही उसने कह दिया था.
“आज कैसे आए भैय्या, आपने तो छुट्टी की बात कही थी!” आशा के विपरीत वह सोमवार को आ भी गया था.
“कल पलंग के नीचे मेहमानों का बक्सा जो रखा था!”
शायद उसे लगा होगा कि ज्यादा काम होने से मेमसाहब को बहुत परेशानी होगी!

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244