मेहमानों का बक्सा
रतनलाल सचमुच अनमोल रतन था. उसकी चमत्कृत करने वाली बातों से प्रभावित होकर मैंने रतनलाल पर पेन से 14 फुलस्केप पेजों की कहानी लिखी थी. उम्र का वार्धक्य, धन का अभाव, ढेरों चिंताएं, मन को घेरे थीं. रतन फिर भी रतन ही रहा. ठीक चार बजे बर्तन-सफाई करने आ जाता था. सारा काम करके मुझे साढ़े छह बजे स्कूल के लिए जो निकलना होता था.
बेटी की शादी के लिए उसने दिन में एक बार भोजन खाने का व्रत लिया हुआ था.
“अगले सप्ताह सोमवार को मैं छुट्टी करूंगा.” एक सप्ताह पहले ही उसने कह दिया था.
“आज कैसे आए भैय्या, आपने तो छुट्टी की बात कही थी!” आशा के विपरीत वह सोमवार को आ भी गया था.
“कल पलंग के नीचे मेहमानों का बक्सा जो रखा था!”
शायद उसे लगा होगा कि ज्यादा काम होने से मेमसाहब को बहुत परेशानी होगी!
— लीला तिवानी