गीतिका/ग़ज़ल

अनकहे अल्फाज़

ख़ामोशियों के अनकहे, अल्फाज़ हो तुम्ही।
तनहाईयों में गूंजती,आवाज हो तुम्हीं ।

आते हो दबे पांव,छुपके फिर भी,जाने क्यूं,
दिल से गुज़रती आहटों के, राज़ हो तुम्हीं।

धड़कन में बज रहा है, जो अनसुना नग़मा,
उसकी हर एक लय के हसीं साज हो तुम्हीं।

दिल जानता है तुम, बसे हुये हो उसी में,
सांसों की आयतों के,हमराज़ हो तुम्हीं ।

आमद हो जिनकी रुह तक,वो जाएंगे कहां,
आगाज़ से अंज़ाम का,अंदाज़ हो तुम्हीं ।

दरिया है इश्क का ये” गर डूब के “स्वाती”
होता हो फिर आगाज़ तो आगाज़ हो तुम्हीं।

— पुष्पा “स्वाती “

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है