अनकहे अल्फाज़
ख़ामोशियों के अनकहे, अल्फाज़ हो तुम्ही।
तनहाईयों में गूंजती,आवाज हो तुम्हीं ।
आते हो दबे पांव,छुपके फिर भी,जाने क्यूं,
दिल से गुज़रती आहटों के, राज़ हो तुम्हीं।
धड़कन में बज रहा है, जो अनसुना नग़मा,
उसकी हर एक लय के हसीं साज हो तुम्हीं।
दिल जानता है तुम, बसे हुये हो उसी में,
सांसों की आयतों के,हमराज़ हो तुम्हीं ।
आमद हो जिनकी रुह तक,वो जाएंगे कहां,
आगाज़ से अंज़ाम का,अंदाज़ हो तुम्हीं ।
दरिया है इश्क का ये” गर डूब के “स्वाती”
होता हो फिर आगाज़ तो आगाज़ हो तुम्हीं।
— पुष्पा “स्वाती “