ग़ज़ल
है बहुत यार सरफिरी दुनिया।
कौन कहता कि है सही दुनिया।
कब किसी का ये साथ देती है,
साथ किसकेभला चली दुनिया।
रोज़ करती फिरे वफ़ा दारी,
इतनी भी तो नहीं भली दुनिया।
साथ देती नहीं मुसीबत में,
यूँ न अच्छी हमें लगी दुनिया।
साँस लेना तलक मुहाल जहाँ,
तंग सी एक है गली दुनिया।
— हमीद कानपुरी