गीतिका – सावन आया
जागा बाग महकती कलियाँ।
सावन आया झूलें सखियाँ।।
गातीं कजरी गीत मल्हारें,
मधुर – मधुर करतीं नित बतियाँ।
झड़ी लगी पावस की रिमझिम,
टप – टप टपक रहीं हैं बुँदियाँ।
प्रीतम की नित याद सताए,
पड़ीं सेज पर लगें न अँखियाँ।
नए – नए अँखुए उग आए,
झुरमुट बन झुकतीं पल्लवियाँ।
चले पनारे नदियाँ नाले,
लेश नहीं पानी की कमियाँ।
‘शुभम्’ दृश्य है सुखद मनोहर,
अंकित कर अपनी नव छवियाँ।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’