कविता

मालूम न था

एक वीरान-से इलाक़े में
एक विशाल पेड़ के नीचे
रेल की पटरी के किनारे
बैठा रहना भी
दुख की काट हो सकता है
मालूम न था यह स्थल भी
एक सुख का घाट हो सकता है
जहाँ प्राप्त इतना सुन्दर और मधुर
चिड़ियों का साथ हो सकता है!

— केशव शरण

केशव शरण

वाराणसी 9415295137