कविता

लिख डालो

अपने जीवन का एक एक हिसाब लिख डालो,
खुद के हुनरों पर एक नई किताब लिख डालो,
जब कुछ भी नहीं सूझ रहा,
कोई पहेली नहीं बूझ रहा,
बचपन में क्या क्या खेले हो तुम,
गम कितना अब तक झेले हो तुम,
किसने कब कब क्यों रुलाया है तुम्हें,
किस हाथों ने क्या खिलाया है तुम्हें,
कभी खुद को समझा होगा महताब लिख डालो,
अपने जीवन का एक एक हिसाब लिख डालो,
खुद के हुनरों पर एक नई किताब लिख डालो,
शूल शत्रु ने कब कब सीने में उठाया है,
स्वयं सोकर तुम्हें दिन भर यूं बिठाया है,
अपनों को पास जाकर कब कब जगाया है,
भीतरघात से अपनों को कब कब रुलाया है,
कौन अपना और पराया किसको बताया है,
अहसान महामानवों का कब तू जताया है,
खुद कुछ पढ़ लिए तो कितनों को पढ़ाया है,
मुसीबतज़दा को कब कब आगे बढ़ाया है,
आगे पीछे का सारा इतिहास लिख डालो,
अपने जीवन का एक एक हिसाब लिख डालो,
खुद के हुनरों पर एक नई किताब लिख डालो।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554