शुभ सावन सरसाया है
काले -भूरे बादल छाए
शुभ सावन सरसाया है।
विटप झूमते अंबर के तल
हवा चली पुरवाई है।
दिन में मानो रात हो गई
होती ताप -विदाई है।।
लुएँ नहीं अब जेठ मास की
कजरी गीत सुनाया है।
सूर्य देवता नहीं दिखें अब
झूम रहे गजराज बड़े।
झकझोरे हैं लता वृक्ष सब
लुढ़काते हैं भरे घड़े।।
अमराई में कोयलिया ने
नित मल्हार को गाया है।
टर्र-टर्र खेतों में होती
जुगनू लालटेन लाए।
वीर बहूटी शरमाई हैं
नहीं केंचुए अब आए।।
लगीं बरसने बूँदें सत्वर
‘शुभम्’ समा ये भाया है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’