ग़ज़ल
ज्यों छुआ फूल को मन सुवासित किया
अब किसी चीज़ को भी न दौलत किया
सोच हमने लिया आप आयें यहाँ
देख हमने तभी घर सुसज्जित किया
इश्क़ की राह पर आज हम चल पड़े
आज दूँ मैं बता सत्य मुखरित किया
मुलम्मा ही चढ़ा पेश देखो करें
झूठ ने सत्य को कब पराजित किया
जो बुलाया तुम्हें तुम न आये यहाँ
अब यही सोचना देख पीड़ित किया
— रवि रश्मि ‘अनुभूति’