गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ओस क्यूँ बिखरी हुई है घास पर?
कौन यह रोता रहा है रात भर?

अब नहीं दिखती रहम की बानगी,
आदमी होने लगा है जानवर।

सैकड़ों मुश्किल सही, रख हौसला
रास्ता जद्दोजहद से पार कर।

मंज़िलों की ओर बढ़कर देख तो,
सामने ख़ाली पड़ी है रहगुज़र।

सिंधु ही हर बिंदु का गंतव्य है,
एक दिन अस्तित्व होना है सिफ़र।

— बृज राज किशोर ‘राहगीर’

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)