परवाह
अगर मैं रूठ भी जाऊं किसे परवाह मेरी है
दिलों में सबके रह पाऊं यही बस चाह मेरी है
फलक़ से फर्श तक जो गूंजती है चारसू मेरे
मुझे घेरे जहानों में कोई बस आह मेरी है
तुझे तो बा-अदब और बा-मुरव्वत हैं बरी करते
यही कह सकते हैं सब ग़लती ख़्वाह-मख़ाह मेरी है
हक़ीक़त में भले तारीक रातें मेरी हों फिर भी
ख़यालों में बड़ी पुर-नूर ख़्वाब-गाह मेरी है
कोई दौलत, कोई शोहरत, कोई जग जीतना चाहे
ख़ुलूस-ओ-अम्न में लिपटी “गीत” पनाह मेरी है
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”