रक्षाबंधन, प्यारा बंधन
भारतीय संस्कृति प्यार, दुलार, संस्कार सिखाती है।
होली, दिवाली सा त्यौहार हो या कोई राष्ट्रीय पर्व हम सब प्रेम भाव से मिल-जुलकर, जोश, उमंग, उल्लास के साथ पर्व मनाते हैं।
हम भारतवासी पर्व, त्यौहार, उत्सव प्रिय है। हमें घर-परिवार, रिश्ते-नाते सहेजने में परमानंद अनुभूति होती हैं।
हम भारतवासी रिश्तों को खूब सहेजते हैं। अपनेपन और आत्मीयता के सौरभ से आपसी संबंध, भाईचारा सुरभित करते हैं।
भाई.बहन स्नेह सर्व विदित.हैं।
पावन, निश्चल, निर्मल प्रेम धारा हो जैसे। स्नेह ऐसा कि जीवन दीपाये। शीतल फुहारों का सुकून। जिसकी छत्रछाया में गम का अंधियार मिट जाता है। बहना, लाल चुनरी ओढ इतराती, भाई से मिलने आती है। पूजा का थाल सजाकर राखी, रोली, चंदन, कुमकुम लेकर पीहर आती है। यादों की बारात निकलती है दिल से। सब साथ मिलकर खट्टी -मीठी यादों में खो जाते हैं।
बचपन वे सुहाने दिन, शरारतों को याद कर मन तरोताजा हो जाता हैं।
सच, छोटे थे तब हक से राखी का नेग लेते थे। अपनी पसंद की राखी कलाई पर बड़े प्यार से बांधते। बड़ा सा तिलक भाल पर सजकर अशेष शुभकामनाएं दुआएं मांगते थे।
बढ़ती उम्र के साथ रिश्ते में दुराव, खटास आ रही है। स्वार्थ और अहंकार फन फैलाये बैठे है। दिखावा, आडंबर, लोभ लालच के चक्रव्यूह में अपनी गरिमा खो रहे हैं।
प्यार, दुलार की नमीं से रिश्तों को सींचे।
जीवन सुंदर उपवन है। निस्वार्थ प्रेम से महकाते रहें।
भाई बहन का रिश्ता अनमोल है। नेह दीप से दमकता, अपनेपन के मृदुल भावों से चहकता।
रक्षाबंधन त्यौहार खूब उल्लास से मनाये।
स्नेहिल रेशम बंधन से बंधे रहे।
भाई बहन के प्रेम की पावनता बनाये रखे।
हाथ में राखियां ले, उपहार समेटती लड़कियां और भाई बनकर अस्मिता लुटते लडकों से राखी पूनम की गरिमा बचानी होगी। निर्मल प्रेम धारा को स्वार्थ भावना के अवरोध से बचाना होगा।