मुक्तक/दोहा

आत्मनिर्भर नवभारत

आत्मनिर्भर नवभारत का हो रहा हैं  बहुमान, 

नव चेतना उल्लास, नवल स्वप्न यशोगान,

शोध, विकास की नित नयी संभावनाएं,

नील गगन में भर रहे हैं उन्मुक्त उड़ान।।

अपनी माटी में प्रदीप देश प्रेम तेजस ज्वाला,

हर बालक शूर वीर, वीरांगना हो हर बाला,

माँ भारती के सपूत लाल, न्योछावर हैं प्राण,

बून्द-बून्द लहू की राष्ट्रप्रेम पगी, सद्भाव उजाला।। 

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८