कविता

चौपाई

नित्य प्रभु को शीष झुकाओ,

खुद पर भी विश्वास दिखाओ।

सब कुछ ईश्वर के नाम करो,

फिर अपने सब काम करो।। 

मंगल मंगल दिवस बनाओ,

हनुमत तनिक कृपा बरसाओ।

पूर्ण होय सब काम हमारे,

ध्यान धरो प्रभु राम दुलारे।।   

जीवन की शुभ सुबह यही है।

जीवन की हर रीति  वही है।।

समरस कब हर भाग्य दिखी है।

हार गये फिर जीत लिखी है।।

खुद पर जब विश्वास रखोगे।

सारी बाजी जीत सकोगे।।

जिसने अपना संयम खोया।

उसने अपनी किस्मत धोया।।          

माता मुझ पर दया दिखाओ,

मुझको भी कुछ ज्ञान कराओ।

मेरी भी किस्मत चमका दो,

निज सुत का जीवन दमका दो।। 

माता जीवन की है दाता,

बच्चों की वह भाग्य विधाता।

ध्यान मातु का जो भी रखते,

स्वाद मधुरता जीवन चखते।। 

देर और अब करो न माता,

दर्शन देने आओ माता।

विनती इतनी सुन लो माता,

सोये भाग्य जगाओ माता।। 

रंग अबीर गुलाल उड़ाओ,

मन के सारे मैल मिटाओ।।

निंदा नफ़रत दूर भगाओ,

होली का त्योहार मनाओ।। 

रँग अबीर गुलाल उड़ाओ,

सब मिलकर ये पर्व मनाओ। 

राग द्वैष को दूर भगाओ,

नहीं किसी को दु:ख पहुंचाओ।। 

होली भी अब बदल गई है,

कल वाली अब पहल नहीं है। 

भाईचारे का भाव नहीं है,

सौम्य सरल स्वभाव नहीं है । 

रंग अबीर गुलाल उड़ाओ,

होली का त्योहार मनाओ।

सबको अपने गले लगाओ,

सुंदर ये संसार बनाओ। 

रंगों से सब खूब नहाते,

होली है सब ही चिल्लाते।

ध्यान सदा मर्यादा रखना,

गुझिया पापड़ मिलकर चखना।। 

होली का त्योहार मनाओ,

नहीं नशे से प्यार जताओ।

रंग अबीर से खेलो होली,

रखकर मीठी मीठी बोली।।    

प्रेम प्यार सद्भावी होली,

सबकी वाणी मीठी बोली।

भ्रष्टाचारी गुझिया खायें,

होली का आनंद उठायें।। 

रंगों की रंगीली होली,

खाकर भंग खेलते होली।

इसकी होली उसकी होली,

भेद नहीं करती है होली।। 

सबको सम लगती है होली,

सबको गले मिलाती होली।

रंग अबीर गुलाल उड़ाते,

जमकर गुझिया पापड़ खाते।।

बिगुल बजा, चुनाव है आया,

जनता का पावन दिन आया।

अपने मत की कीमत जानो,

अपनी ताकत भी पहचानो।। 

झूठों का  बाजार लग रहा,

खुल्लमखुल्ला झूठ बिक रहा।

ठगा जा रहा खुश भी वो  है,

जो ठगता नाखुश वो ही है।। 

फिर चुनाव का खेल शुरु है,

सभी पास बस हमीं गुरु हैं। 

हार जीत में बहस चल रही,

जनता तो गुमराह हो रही।।

गणपति बप्पा आप पधारो।

अपने भक्तों को अब तारों।।

शीष नवाए तुम्हें पुकारें।

भक्त तुम्हारे खड़े हैं द्वारे।। 

नमन मेरा स्वीकार कीजिए,

मन का मैल निकाल दीजिए। 

पहले अपना कर्म कीजिए,

फिर औरों को दोष दीजिए। 

आज स्वयंभू  दौर है आया ,

मेरे  मन को  बहुत रुलाया। 

मर्यादाएं दम तोड़ रही हैं, 

दौर नये पथ दौड़ रही हैं। 

अपना अपना स्वार्थ हो रहा,

आपस  में  ही द्वंद्व  हो रहा।

अब किस पर विश्वास करें हम,

खुद से ही जब डरे हुए हम।।  

कविता की जो करते हत्या,

उनका आखिर मतलब है क्या।

कवि कविता के पथ चलता है,

गिरवी कलम नहीं रखता है।। 

आओ कविता दिवस मनाएं,

कविता का भी मान बढ़ाएं। 

कवि शब्दों का मेल कराएं,

धनी कलम के हम कहलाएं।।

जीवन की हर सुबह नई है,

सबका ये भी भाग्य नहीं है।

हार बाद ही जीत लिखी है,

जीवन की बस रीति यही है। 

जीवन की शुभ सुबह यही है।

जीवन की हर रीति  वही है।।

समरस कब हर भाग्य दिखी है।

हार गये फिर जीत लिखी है।।    

देखो सबका दर्द बढ़ा है।

इससे उसका और बड़ा है।।

अपने सुख से कहाँ सुखी हैं।

दूजै सुख से बहुत दुखी हैं।। 

मर्यादा दम तोड़ रही है।

हर चौखट ठोकर खाती है।।

पुरुषाहाल नहीं है कोई।

सिसक सिसक मर्यादा रोई।। 

कुर्सी कुर्सी खेल रहे हैं।

अपनों की जड़ काट रहे हैं।।

हमको कुर्सी है अति प्यारी ।

कुर्सी यारी सब पर  भारी।। 

हार कहां हम मान रहे हैं।

बैसाखी ले दौड़ रहे हैं।।

कुर्सी पीछे दौड़ लगाते।

हित अनहित का भोज लगाते।। 

लीला तेरी हमने जानी।

असली सूरत भी पहचानी।।

सूरत से तू भोला भाला।

तूने किया बड़ा घोटाला। 

कैसा खेल निराला खेला।

द्वेष दर्प का ले के मेला।।

बहुत बड़ा तू है दिलवाला।।

आखिर कौन तेरा रखवाला।। 

अब बदलाव हमारा जिम्मा।

रहना हमको नहीं निकम्मा ।।

आओ अपना देश बचाएँ।

लोकतंत्र मजबूत बनाएँ।।

सुध तो अब भी मेरी ले लो।

तनिक नजर रख साथी खेलो।।

हम भी शरण आपकी आये।

थोड़ा हमको भी दुलरायें।। 

गणपति आज कृपा की बारी।

जीवन बहुत लगे अब भारी।।

सबकी लाज बचाओ अब तुम।

राहें सरल बनाओ सब तुम।। 

कथनी करनी अंतर कैसा।

गलत सही जो कहना वैसा।।

मन में भेद कभी मत लाओ।

जीवन पथ पर बढ़ते जाओ।। 

बजट नया फिर पास हुआ है।

वाक् युद्ध का द्वंद्व मचा है।।

सही ग़लत सब व्यर्थ की बातें।

सबके अपने स्वार्थी नाते।।

कर देती है जनता सारी।

बनी आज है वो बेचारी।।

काम सदन में कम हो पाता।

करते वहिष्कार क्या जाता।। 

समय खेल ये कैसा खेले।

इसके ही तो सब हैं चेले ।।

लज्जा से अब काँपा हूँ मैं।

परछाईं से भागा हूँ मैं।।

आओ खेल नया हम खेलें।

जीत हार का ना गम झेलें।।

जलवा अपना क़ायम होगा।

खेल हमारा अनुपम होगा।। 

बाबू भैया वोट करोगे।

जिम्मेदारी जब समझोगे।।

लोकतंत्र मजबूत बनेगा।

सोने से कुछ नहीं मिलेगा।। 

मातु पिता आधार हमारे।

वे ही  देते  सदा  सहारे।।

बात कभी ये भूल न जाना।

वरना होगा कल पछताना।।         

किसने किसको कब जाना है।

किसने किसको पहचाना है।।

राज़ यही तो लुका छिपा है।

जाने ये किसकी किरपा है।।

हमको जिसने भी जाना है।

लोहा मेरा वो माना है।।

तुम मानों अब मेरी बातें।

त्यागो मन की सब प्रतिघातें।।

नहीं हाथ कुछ आने वाला।

रहा नहीं कोई दिलवाला।।

मत दिमाग अपना चलवाओ।

नहीं किसी को अब भरमाओ              

*सुधीर श्रीवास्तव

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