गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सपनों की तकदीर बनाऊं कैनवस पर।
तेरी इक तस्वीर बनाऊं कैनवस पर।
तेरे उड़ते बालों को तरतीब मिले,
बादल की ज़ंजीर बनाऊं कैनवस पर।
तेरी पलकों के भीतर जो आंसू हैं,
म्यान में बंद शमशीर बनाऊं कैनवस पर।
उल्कापात हमेशा अच्छे लगते हैं,
रूखसारों पर नीर बनाऊं कैनवस पर।
तेरे नक्शों के अलंकार सुशोभित हैं,
जब भी मैं कश्मीर बनाऊं कैनवस पर।
जिस में तेरी यादों की परछाई है,
पानी ऊपर लकीर बनाऊं कैनवस पर।
जिस में मेरा बचपन ठाठ जवानी है,
यादों की ताबीर बनाऊं कैनवस पर।
झील किनारे वह अकेला बैठा है,
मिलने की तदबीर बनाऊं कैनवस पर।
रब्ब से ज्यादा मैंने तुम को चाहा है,
सच्च की एक ज़मीर बनाऊं कैनवस पर।
बालम के जो शेअर प्यारे-प्यारे हैं,
मकते के आखीर बनाऊं कैनवस पर।

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409