व्यंग्य – बलात्कार का स्वर्णिम इतिहास
भारत में बलात्कार का इतिहास स्वर्णिम रहा है। त्रेता-द्वापर में इसके पराक्रम को स्वर्णाक्षरों में उकेरा गया है। विदेशी आक्रांताओं द्वारा किए गये बलात्कार पर पोथियाँ लिखी जा सकती हैं। शोध का यह विषय इतिहास के विद्यार्थियों को पीएचडी की उपाधि से अलंकृत कर सकता है। एक बात कहूँ- इस पर इतिहास लिखनेवालों से अधिक इतिहास रचनेवाले बाजी मार ले जाएँगे।
आज़ादी की अठहत्तर वीं वर्षगाँठ पर देश ने बलात्कार के आकाश पर एक और ऊँची छलाँग लगाई। पाशविकता का एक और कीर्तिमान स्थापित हो गया है। ओलंपिक में भले ही एक भी स्वर्ण पदक हमें ना मिला! कोई अफसोस नही। ग्यारह खिलाड़ी सामूहिक रूप से मिलकर हॉकी का वह गोल नहीं दाग सके, जो हमें सुनहरे पदक के दर्शन करवा दे! पछताइए नहीं। हमारा भाला भी लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाया! खेल में सब चलता है। हमारी पहलवान के साथ समय ने अन्याय कर दिया! लोगों ने आँसू बहाने में कमी नहीं बरती! लेकिन एक जीवनदात्री को भेड़ियों ने जी भर नोच – खसोटकर तार-तार कर दिया। सारे विश्व को हमारे पराक्रमी बलात्कारियों ने सामूहिक रूप से बलात्कार करने का नया तरीका समझाया दिया। ओलंपिक के आयोजकों को इस “वीभत्स खेल” को भी अगली स्पर्धा में शामिल करने की सलाह मैं देना चाहता हूँ। भैया! कुछ तो मेरे देश की इज़्ज़त बचाने का अवसर दो। खेलों में नहीं तो, कम-से-कम इसी क्षेत्र का पराक्रम हमें स्वर्ण-सुख दिला दे। हमें देश की इज़्ज़त बचाने के लिए यदि अपने देश की बहन-बेटियों की इज़्ज़त लूटनी पड़े तो ये पराक्रमी बलात्कारी कोई कसर नहीं रखेंगे।
मुझमें राजनैतिक समझ और चेतना का अभाव है। रिश्वतखोरी, मदिरापान, बेईमानी, चोरी, जातिवाद, नारी-शोषण, शिक्षे में धांधली आदि नये भारत के सांस्कृतिक कार्यक्रम हैं। जो इनसे अछूता है, वह भारतीय नहीं। उसे देशद्रोही घोषित कर देना चाहिए। इन अपराधों के लिए जब शासक राजनैतिक दल पर विरोधी दल आरोप लगाना शुरू कर दे तो वह राजनीति
कहलाता है। मेरी मोटी बुद्धि पिछले पचास सालों से यही माने बैठी थी कि राजनीति याने सुशासन की स्थापना कर जनता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना। मोर्चा निकालिए, आप क्रांतिकारी माने जाएँगे। मोमबत्ती जलाकर सड़कों पर प्रकाश-उत्सव मनाइए, आपसे बड़ा शांतिदूत दुर्लभ होगा। यदि आप शहीदों के ताबूत पर आँसू बहाते है तो आपसे बड़ा देशभक्त तो कहीं मिल ही नहीं सकता। इन गुणों में पारंगत हो जाइए साहब आप आधुनिक राजनीति शिरोमणि और आचार्य चाणक्य के वंशज नहीं बाप घोषित कर दिए जायेंगे। धन्य है प्रभु इस देश के नेता और और उनकी नीतियाँ।
राजा बलि, राजा हरिश्चंद्र, भगवान राम, चंद्रगुप्त मौर्य, जहाँगीर जैसे न्यायप्रिय राजाओं का इतिहास आज हमारी न्याय व्यवस्था पर हँस रहा है। हमारी न्यायपालिकाओं में स्थापित न्याय की देवी की प्रतिमा की आँखों के ऊपर बँधी पट्टी के नीचे आँसुओं की धार सूख गयी है। सिसकियाँ सुनाई दे रही है। वह सहमी हुई है कि एक दिन कहीं उसका ही बलात्कार तो नहीं हो जायेगा? वकील कोई दलील नहीं दे सकेंगे! जज साहब ऑर्डर-ऑर्डर चिल्लाते रह जायेंगे!! और बलात्कारी न्यायालय में न्यायदेवी का चीरहरण कर जाएँगे वह भी सामूहिक। पुलिस सबूत ढूँढने में लग जाएगी। सीबीआई अपनी शतरंज के मोहरे सजाएगी। और राजनैतिक भेड़िए अपने तंदूर पर बलात्कार पीड़िता को सेंकना शुरू कर देंगे। मेरे जैसे उस पर व्यंग्य लिखेंगे और देश की जनता प्रतीक्षा करेगी….. अगले बलात्कार की। हमारा इतिहास बलात्कार के क्षेत्र में सदा ज्वाजल्यमान रहेगा। कभी धूमिल नहीं हो सकता।
— शरद सुनेरी