कविता – सोच ऊंची रहें
बुलन्दी पर पहुंचने में,
मजबूत इरादों से लबालब होनी जरूरी है।
तख्त और ताज मिलता है,
इसमें ताकत की खुशबू,
सबसे पहले करीबी दोस्त बनकर तैयार रहे,
इस खिदमत की जरूरत,
बन जाता मजबूरी है।
शिखर पर पहुंचने के लिए
इस इल्म को हासिल कर,
हमेशा आगे बढ़ सकतें हैं।
उम्मीदों पर खरा उतरने में,
सबसे पहले खड़ा होकर,
नई इबारत लिख सकते हैं।
सहजता से स्वीकार करने पर,
हर लम्हा याद आती है।
खुशियां और बेचैनी में,
फर्क सिर्फ फर्ज निभाते वक्त ही,
समझ में आती है।
नजदिकियां बढ़ाने में भी,
सहर्ष तैयार सोच को सम्मान मिलता है।
टेढ़ी मेढी सड़कों पर उतरे लोग अक्सर,
सोचते हुए रह जाते हैं,
सुकून देने वाली ताकत,
कभी नसीब नहीं होता है,
उम्मीद और सपने बेचने का ताना-बाना,
अक्सर कहीं खो जाता है।
उम्मीदों पर खरा उतरने में,
कामयाबी मिलेगी ज़रूर।
हमें मिलकर अपने लोगों को ही समझने की जरूरत है,
इसमें कोई संदेह नहीं रहेगा,
किस्मत ऐसे ही शख्सियत की खुलेगी,
हम फिर नहीं रहेंगे मजबूर।
— डॉ. अशोक, पटना