कविता
कैसे करूँ मैं खुद को तेरे काबिल ऐ जिंदगी
जब भी आदतें बदलती हूँ तू सवाल बदल देती है
जीने की ख्वाहिश में करवट बदलना भूल गयी
अहसास समेटने की जिद में जज्बात बदल देती है
फिक्रमंद तमाम उम्र रहे हम खुद के हिजाब से
पहेली जिंदगी की अगले ही पल शबाब बदल देती है
अश्कों का दरिया कैसे होता खुशियों का पैगाम
झूठी आशा मे जिंदगी मौसम बदल देती है
— वर्षा वार्ष्णेय