कविता

लूट रहे आबरू बोटी बोटी खा रहे

यहां जश्न पर जश्न हैं मनाये जा रहे
वो नारी की आबरू लूट कर हैं बोटी बोटी खा रहे
एक दूसरे पर इल्ज़ाम से क्या होगा हासिल
हम यह कैसे संस्कार बच्चों को हैं दिए जा रहे

यह कैसी कानून है यह कैसे हैं कानून के रखवाले
आबरू लूटी बेटी की आत्महत्या हैं बता रहे
कानून के रक्षक ही बचा रहे हैं मुजरिमों को
ऐसा करके जैसे वो बड़ा नाम हैं कमा रहे

क्यों इतना संवेदनहीन हो गया है आदमी
न उम्र का लिहाज़ है न रिश्ते नातों का है ख्याल
बेटियों की सुरक्षा का कौन है जिम्मेवार
कलेजा फट जाता है जब बेटियों का देखते हैं ऐसा हाल

हमेशा मौन क्यों रहता है क्यों सोया है समाज
बहुत सो चुका गहरी निद्रा से अब तो जाग
गर्जन ऐसी कर ज़माना थर थर कांप उठे
कुचल दे ऐसे अत्याचारियों को क्यों कर रहा लिहाज़

कानून से भी कुछ नहीं होगा न्याय की भी हैं आंखें बंद
सबूतों के बिना यह आतताई हैं घूमते स्वछंद
किसी का घर जले या कोई मरे इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता
कानून कुछ नहीं करता तभी तो इनके हौसले हैं बुलंद

नारी को जहां आज भी मानते हैं
देवी,लक्ष्मी और दुर्गा का स्वरूप
सामने क्यों आ रहा बिगड़े समाज का
फिर यह विकृत मानसिकता वाला चेहरा कुरूप

वह भी लोग थे जिन्होंने नारी की आबरू के लिए
लंकापति रावण और कंस का कर दिया संहार
कैसे बचेंगी नारियां इन भूखे भेड़ियों के जाल से
सब मिलजुल कर करो इस पर विचार

अपने बच्चों को दीजिये सब अच्छे संस्कार
कैसा होना चाहिए नारी के साथ व्यवहार
माँ की कोख से ही भगवान ने भी लिया है जन्म
चाहे किसी भी युग में कोई भी रहा हो अवतार

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र