कविता

तू नहीं है भारत की बेटी?

क्यों और कैसे मान लें
तुझे भारत की बेटी,
तू है ही नहीं देश की चहेती,
विक्षिप्त हैवानों ने
तुझे भी बर्बरता पूर्वक लूटा खसोटा
और दरिंदगी का खूनी खेल खेला है,
तूने भी देश की बेटियों की तरह
हर दर्द और दहशत झेला है,
तेरे चंद लोग तेरे लिए
एक दो दिन चिल्लायेंगे,
फिर नियति मान चुप रह जाएंगे,
हां शायद है उन्हें अधिकार
तुझसे दरिदंगी करने का,
क्योंकि कोई रहता नहीं तेरे पीछे,
जातिय दंभ,उच्चता का वहशियाना सोच
क्यों मान लेता है तुझे सबसे नीचे,
तेरे साथ हुई घटना के समय
तेरी जैसी किसी मासूम के साथ
हुई वहशी हमला,
कर देता है पूरे राष्ट्र को उद्वेलित,
जन जन हो जाता है आंदोलित,
मीडिया समाचार पत्र उबल पड़ते हैं,
लोग घरों से निकल पड़ते हैं,
उस अबला को इंसाफ दिलाने,
मांगते हैं मौत की कठोरतम सजा,
जलाते हैं कैंडल,निकालते हैं मार्च,
करते हैं धरना प्रदर्शन,
पर तेरे लिए आवाज उठाने वाले
चार लोगों के भी नहीं होते दर्शन,
दोनों के प्रति ज्यादतियां एक जैसी है,
पर तू क्यों भूल जाती है कि
तेरी जाति एक जैसी नहीं है,
पीढ़ियों से चली आ रही तेरे प्रति दरिंदगी,
शायद तुझे जताते रहते हैं कि
तू नहीं है भारत की बेटी।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554