थामे जब तक हाथ मेरा
तुम हो जब तक तभी तक आनंद मेरा,
तुम आई तो जीवन में आया नया सबेरा ।
थकी -थकी सी जिन्दगी दर्द बड़ा घनेरा ,
थामे जब तक हाथ मेरा रहता नया सबेरा ।
उलझनों में व्याप्त है जीवन की हर सासें,
तेरे बिना कैसे सह पायें गहरी दर्द की रातें।
कदम तेरे संग संग तो निश्चय ही टूटे गाठें ,
गहरे सागर से भी छनकर रहता नया सबेरा।
उम्र बीते पल पल यादों में ठहरे कहाॅं सबेरा,
रात की निंदिया अब छोड़कर हम सबको,
आंखों में खुशियों सपने ढूंढे नया किनारा
थामे जब तक हाथ मेरा रहता नया सबेरा ।
— शिवनन्दन सिंह