कविता

आधुनिकता की भट्टी में नैतिकता जल गई

बढ़ते जा रहे आज क्यों झगड़े झमेले
रहना चाहते हैं क्यों सब अकेले
मेल मिलाप क्यों छूट रहा अपना
भूल गए अब अपने त्योहार और मेले

न किसी से मिलना न बैठ कर बात करना
छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब के लड़ना
क्या हो रहा है यह सब अपनी नज़र के सामने
अमर समझ रहे सभी याद नहीं किसी को मरना

सब पीछे छूट गए हम आगे बढ़ गए
ज़िन्दगी की सीढियों कुछ फिसल गए कुछ चढ़ गए
क्या खोया क्या पाया हमने वक्त के साथ
जाति और मज़हब के नाम पर लड़ गए

सहनशीलता न जाने कहाँ खो गई
संवेदनहीनता हम पर हावी हो गई
गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं हमारी
नफरत के बीज हम सबमें बो गई

वक्त बदला हमारी सोच भी बदल गई
वक्त के साथ ही संस्कारों की बलि चढ़ गई
पढ़ाई तो बहुत कर ली जमाने में लोगों ने
लेकिन आधुनिकता की भट्टी में नैतिकता जल गई

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र