कविता

वासुदेव

सजे किरीट मोर पंख कृष्ण माथ झूमते।
चले समीर मंद–मंद शीश केश चूमते।।
दिखे स्वरूप मेघ श्याम नैन नील साॅंवरे।
लपेट पीतवर्ण देह हाथ बाँसुरी धरे।।

अरण्य जात कृष्ण धेनु गोप ग्वाल संग में।
कदंब डाल बैठ श्याम डोलते उमंग में।।
करें विनोद वासुदेव साथ गोप गोपियां।
अनन्य भक्ति कृष्ण की बसा रखें सभी हिया।।

करे घमंड चूर नंदलाल कालिया डरे।
मिले क्षमा सदैव कृष्ण भक्ति भाव जो भरे।।
करे प्रणाम देवता निहारते स्वरूप को।
कृतार्थ तीन लोक देख कृष्ण विश्वभूप को।।

सनातनी अधर्म से अनीति राह जो चले।
पुराण वेद ग्रंथ ज्ञानहीन हस्त को मले।।
मनुष्य याचना करें पुनः धरा प्रवेश हो।
चतुर्भुजी करो कृपा सदा‌ परास्त क्लेश हो।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]