गीत
मन का मकरन्द उड़ा कली -कली खिल गई ।
हवाओं ने प्यार किया खुशबुएँ बिखर गईं।।
भीगे -भीगे मौसम का सौंधापन भा गया ।
हरसिंगार हँस पड़ा ग़ुलमोहर शरमा गया ।
धीमी -धीमी फुहार से वादियाँ सिहर गईं ।
हवाओं ने प्यार किया खुशबुएँ बिखर गईं ।
बदलियों का आँचल हवाओं में उड़ गया ।
रेशमी अनुभूतियाँ हृदय मचल- मचल गया ।
अम्बर की धड़कन बढ़ी बिजलियाँ- सी गिर गईं ।
हवाओं ने प्यार किया खुशबुएँ बिखर गईं ।
झीलों के दर्पण में रूप का श्रृंगार हुआ ।
सरिता का वरण करने सागर तैयार हुआ ।
लहरों के संग – संग भावनाएँ तिर गईं ।
हवाओं ने प्यार किया खुशबुएँ बिखर गईं ।।
— डॉ. रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)