वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर राइटर
लघुकथा
वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर राइटर
पिछले दिनों एक साहित्यिक कार्यक्रम में गया था। वहाँ कार्यक्रम के दौरान मेरे बगल में बैठे एक सज्जन ने अपनी प्रकाशित पुस्तक की एक प्रति मुझे देते हुए आग्रह किया कि मैं उसकी एक संक्षिप्त समीक्षा लिखूँ।
आदतन मैंने पुस्तक के आवरण पृष्ठ का मुआयना किया। नजरें एक वाक्य या कहूँ कि वाक्यांश पर आकर अटक गई, ‘डबल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर राइटर’
“वाओ, कांग्राच्यूलजशन, डबल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर।” मैंने उन्हें हाथ मिलाकर बधाई देते हुए कहा।
“थैंक्यू, थैंक्यू जी शुक्रिया।” उन्होंने गदगद भाव से आभार प्रकट की।
“वैसे क्या मैं ये जान सकता हूँ कि ये दोनों वर्ल्ड रिकॉर्ड कैसे बने ?”
“जी, पहला वर्ल्ड रिकॉर्ड तो एक साझा संकलन में शामिल होने पर बना था, जिसमें 11111 साहित्यकार शामिल हुए थे। सबको लेखकीय प्रति और वर्ल्ड रिकॉर्ड धारी होने का प्रमाण-पत्र दिया गया था।”
“अच्छा-अच्छा, बहुत महंगा आयोजन रहा होगा न ? इतने लोगों को इतनी मोटी पुस्तक की प्रति और प्रमाण-पत्र की व्यवस्था कोई हँसी-खेल नहीं।”
“जी हाँ, आपकी बात एकदम सही है, पर जन सहयोग से कुछ भी असंभव नहीं। सभी सहभागी रचनाकारों से इस इस वर्ल्ड रिकॉर्ड का हिस्सा बनने के लिए 5100-5100 रुपए की सहयोग राशि ली गई थी।”
“ओ के, और दूसरा वर्ल्ड रिकॉर्ड ?”
“अच्छा वो… वो तो ऐसे ही बन गया था जी। हनुमान जयंती के दिन स्थानीय स्टेडियम में एक साथ एक लाख लोग मिलकर हनुमान चालीसा का पाठ किए थे। उसमें मैं भी शामिल था। बाकायदा मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर युक्त प्रमाण पत्र भी है मेरे।”
“वाकई जबरदस्त वर्ल्ड रिकॉर्ड हैं आपके।”
“हाँ, देखिए आप तो अपने हैं। आपने पूछा सो मैंने बता दिया। वरना मेरे पाठक तो डबल वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर देखकर इंप्रेस हो जाते हैं।”
मन में आया कि वह पुस्तक उनके मुँह में दे मारूँ, पर खुद को नियंत्रित किया और इससे पहले कि कोई दूसरा वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर राइटर समीक्षा के लिए अपनी पुस्तक देने आए, मैं बाथरूम जाने के बहाने वहांँ से खिसक लिया।
हाँ, उनकी दी हुई पुस्तक वहीं कुर्सी पर ही छोड़ आया था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़