कविता

द्रोपदी

सुनो द्रोपदी 

करता चीर हरण दुशासन

पट्टी बांधे बैठे धृतराष्ट्र 

नज़र झुकाये भीष्म पितामह 

बड़े बड़े सभी योद्धा 

मूक बनें बैठे हैं 

अब न रख तू इनसे उम्मीद कोई 

अब कृष्ण भी न आएंगे 

लाज बचाने तेरी 

तुझको ही अस्त्र उठाना होगा 

अपनी लाज बचाने को 

रनचंडी बन 

इन वस्त्र हरण करने वालों के 

शीश तुझे ही धड़ से अलग करने होंगें 

सभा जुटी है शिखण्डियों की 

लहू पानी है बन चुका आज 

अब उठा खुद अस्त्र 

सिर उड़ा उनका 

जो खेले तेरी अस्मत से

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020