गीतिका/ग़ज़ल

सच देता है उपहार

समय का साथ सच का हो तो सच उपहार देता है
अगर झूठों की हो संगत तो वो दुत्कार देता है
वो अक्सर झूठे लोगों को डुबो देता है दरिया में
वो सच को पार लगने के लिए पतवार देता है
गुलों से बात करने में जो बेअदबी बरतते हैं
नियति में उनके ईश्वर बस नुकीले खार देता है
उसे खुद अपने बारे में खबर कोई नहीं होती
वो सारे शहर के हर घर में जो अखबार देता है
बुजुर्गों को जो दुलराते हैं बच्चों की तरह अक्सर
खुदा उनको ही खुश रहने के सब आसार देता है
तुम अपने “मैं” को मारो और मन से मान लो उसको
मोहब्बत का वही सबसे बड़ा मेयार देता है

— हेमन्त सिंह कुशवाह

हेमंत सिंह कुशवाह

राज्य प्रभारी मध्यप्रदेश विकलांग बल मोबा. 9074481685