गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

धूल आदर्शों पर पड़ी चुपचाप
भीड़ आखिर में छँट गयी चुपचाप

जाने किस मिट्टी की बनी थी वो
सरनिगूँ ही खड़ी रही चुपचाप

हक़ में उसके न थी कोई भी बात
खिड़कियाँ बंद और सभी चुपचाप

लूटते ही रहे दरिन्दे और
बेज़ुबां लुटती ही रही चुपचाप

— डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया

डॉ. पूनम माटिया दिलशाद गार्डन , दिल्ली https://www.facebook.com/poonam.matia [email protected]