पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र मौसम विज्ञान संगठन की डराने वाली रिपोर्ट

वैश्विक स्तरपर दुनियां के हर देश में अब ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव भारी मात्रा में देखने को मिल रहें है। अमेरिका,यूरोपीय यूनियन,नाटो से लेकर अफ्रीकी यूनियन तक और संपूर्ण एशिया से लेकर भारत तक याने ग्लोबल साउथ से लेकर ग्लोबल नॉर्थ तक हमें बेमौसम वर्षा गर्मी ठंड दूषित वातावरण लैंडस्लाइड पहाड़ों का खसकना,अनेकप्रकार के तूफान सहित अनेको प्राकृतिक आपदाएं विपदाएं हमें रोजाना प्रिंट इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया के माध्यम से पढ़ने व सुनने को मिलती है, जिसे हम शायद कुदरत का नाम देकर अपने मन को तसल्ली दे देते हैं, परंतु इस वैज्ञानिक युग में हर उस गतिविधि का संज्ञान लेकर, उसके वैज्ञानिक कारणों को रेखांकित किया जाता है, जिसमें कुदरती आफत शब्द का कोई स्थान नहीं है। मेरा मानना है कि इस प्रकृति के सौहार्दपूर्ण व्यवस्था को बिगाड़ना आम नागरिक के साथ-साथ एक माफिया वर्ग का खेल बहुत अधिक है, जो प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर सारी सृष्टि को खतरे में डाल रहे हैं व अपने बचाव के लिए कि हम पर एक्शन ना हो इसके लिएबढ़ते ढलते कदमों वाली संस्थाएं बनाकर संस्थापक हो जाते हैं। हालांकि 2015 में पेरिस में हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में 196 देश द्वारा बातचीत कर तापमान अधिमानत वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक करने पर सहमति बनी जो पेरिस समझौते के नाम से भी जाना जाता है, इसपर 2016 में सभी देशों के हस्ताक्षर हुए थे। अब मंगलवार दिनांक 27 अगस्त 2024 को संयुक्त राष्ट्र मौसम विज्ञान संगठन की एक रिपोर्ट आई है जिसने सबको डरा दिया है, क्योंकि रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तरपर समुद्र के जलस्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है  जीवाश्म इंधनों के लगातार जलने से बढ़ते धरती के तापमान के कारण शक्तिशाली व मोटी बर्फ की चट्टानें पिघल रही है,व पानी का विस्तार हो रहा है संपूर्ण प्रशांत महासागर में जलस्तर बढ़ने से ऑस्ट्रेलिया के उत्तर व पूर्व के डूबने का खतरा बढ़ गया है। 25 सितम्बर 2024 को, वैश्विक नेता व विशेषज्ञ संयुक्तराष्ट्र मुख्यालय में एक अहम बैठक के लिए जुटेंगे, जहाँ इस ख़तरे से निपटने के उपायों की तलाश की जाएगी। चूंकि मानवीय गतिविधियों नें हमें जिंदा रखने व सुरक्षा देने कीमहासागरों की क्षमता को कमजोर कर दिया है,व संयुक्त राष्ट्र मौसमी विज्ञान संगठन की डराने वाली रिपोर्ट आई है, कि प्रशांत महासागर का जलस्तर बढ़ा है जिससे द्वापीय देशों के बड़े भूभाग डूबने का खतरा पैदा हो गया है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे, ग्लोबल वार्मिंग की वजह से महासागरों के जलस्तर में भारी बढ़ोतरी, प्राकृतिक संसाधनों का अवैध दोहन रोकने व पर्यावरण सुरक्षा में सबका योगदान जरूरी है। 

साथियों बात अगर हम 27 अगस्त 2024 को संयुक्तराष्ट्र मौसम विज्ञान संगठन की डरावनी रिपोर्ट की करें तोग्लोबल वार्मिंग की वजह से धरती की सतह का तापमान लगातार बढ रहा है। इसकी वजह से पृथ्वी पर गर्मी बढ़ रही है, जिससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं और महासागरों के जलस्तर में भारी बढोतरी हो रही है।इस बीच संयुक्त राष्ट्र के विश्व मौसम विज्ञान संगठन की मंगलवार को जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रशांत महासागर का जलस्तर वैश्विक औसत से अधिक बढ़ रहा है। इससे निचले द्वीपीय देशों के बड़े भूभाग के डूबने का खतरा मंडरा रहा है वैश्विक स्तरपर, समुद्र के जलस्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है। जीवाश्म ईंधनों के लगातार जलने से बढ़ते धरती के तापमान के कारण शक्तिशाली और मोटी बर्फ की चट्टानें पिघल रही हैं। गर्म होते महासागरों के कारण पानी के मॉलिक्यूल्स का विस्तार हो रहा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट से पता चला है कि प्रशांत महसागर क्षेत्र के दो माप क्षेत्रों,ऑस्ट्रेलिया के उत्तर और पूर्व में औसत वार्षिक वृद्धि काफी अधिक है। पिछले तीन दशकों में यह वैश्विक वृद्धि प्रति वर्ष 3.4 मिलीमीटर की थी। विश्व मौसम संगठन केमहासचिव ने टोंगा में एक फोरम में क्षेत्रीय जलवायु रिपोर्ट 2023 के विमोचन के मौके पर जारी एक बयान में कहा,मानवीय गतिविधियों ने हमें जिंदा रखने और सुरक्षा देने की महासागरों की क्षमता को कमजोर कर दिया है और हम समुद्र के स्तर में वृद्धि के जरिए एक आजीवन रहने वाले मित्र को खतरों में बदल रहे हैं। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में प्रशांत क्षेत्र में तूफान और बाढ़ जैसे 34 से अधिक खतरे सामने आए, इसमें 200 से ज्यादा लोगों की मौतें हुई हैं। विश्व मौसम संगठन के प्रवक्ता ने कहा कि प्रशांत महासागर के द्वीपों पर बढ़ते जलस्तर का प्रभाव अत्यधिक होगा, क्योंकि उनकी औसत ऊंचाई समुद्र तल से केवल एक या दो मीटर ही है। 

साथियों बात अगर हम संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के इसपर बयान की करें तो उन्होंने कहा प्रशांत द्वीप समूह बढ़ते समुद्री स्तर से गंभीर खतरे में हैं।संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा है कि बड़े प्रदूषकों की स्पष्ट जिम्मेदारी है कि वे उत्सर्जन में कटौती करें अन्यथा विश्वव्यापी तबाही का खतरा होगा।टोंगा में प्रशांत द्वीप मंच के नेताओं की बैठक में उन्होंने कहा, प्रशांत क्षेत्र आज दुनिया का सबसे असुरक्षित क्षेत्र है। प्रशांत क्षेत्र के साथ बहुत बड़ा अन्याय हो रहा है और यही कारण है कि मैं यहाँ हूँ।छोटे द्वीप जलवायु परिवर्तन में योगदान नहीं करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हर चीज यहां कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन अंततः समुद्र का उफान हम सभी पर आ रहा है, उन्होंने फोरम में अपने भाषण में चेतावनी दी, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने बढ़ते समुद्री स्तर और प्रशांत द्वीप देशों के लिए इसके खतरे पर दो अलग-अलग रिपोर्ट जारी की हैं।विश्व मौसम विज्ञानसंगठन के दक्षिण पश्चिम प्रशांत क्षेत्र में जलवायु की स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि इस क्षेत्र को तीन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है,समुद्र के स्तर में तेजी से वृद्धि, महासागर का गर्म होना और अम्लीकरण,समुद्र की अम्लता में वृद्धि, क्योंकि यह अधिक से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर रहा है।उन्होने फोरम में अपने भाषण में कहा,कारण स्पष्ट है: ग्रीनहाउस गैसें,जो मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होती हैं,हमारे ग्रह को नष्ट कर रही हैं। एक बड़े बैनर पर लिखा था,हम डूब नहीं रहे हैं, हम लड़ रहे हैं। एक अन्य बैनर पर लिखा था:समुद्र का स्तर बढ़ रहा है,इसलिए हम भी बढ़ रहे हैं।यह एक ऐसी चुनौती की याद दिलाता है जो दुनियां को नष्ट करने की धमकी देती है।संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई दल ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका नाम है गर्म होती दुनिया में बढ़ते समुद्र यह दर्शाता है कि वैश्विक औसत समुद्र स्तर पिछले 3,000 वर्षों में अभूतपूर्व दर से बढ़ रहा है। 

साथियों बात अगर हम संगठन के चल रहे 53 वीं बैठक सम्मेलन की करें तो,सम्मेलन में उपस्थित अनेक प्रशांत द्वीपवासियों ने सबसे बड़े क्षेत्रीय दाता और उत्सर्जक ऑस्ट्रेलिया का उल्लेख किया।इस वर्ष की शुरुआत में, पीएम एंथनी अल्बानीज़ ने कहा था कि जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के आह्वान के बावजूदऑस्ट्रेलिया 2050 और उसके बाद तक गैस के निष्कर्षण और उपयोग को बढ़ाता रहेगा,उन्होंने कहा, बड़े प्रदूषकों की एक आवश्यक जिम्मेदारी है।इसके बिना, विश्व 2015 में पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। इस समझौते का उद्देश्य सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे सीमित रखना है, तथा तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सुरक्षित सीमा के भीतर रखने के लिए प्रयास जारी रखना है।श्री गुटेरेस ने कहाकेवल तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करके ही हमारे पास ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों के अपरिवर्तनीय पतन और उसके साथ होने वाली आपदाओं को रोकने का एक मौका है। इसका मतलब है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन में 2019 के स्तर की तुलना में 43 प्रतिशत और 2035 तक 60 प्रतिशत की कटौती करना।हालांकि पिछले वर्षवैश्विक उत्सर्जन में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।श्री गुटेरेस ने कहा, जी-20, जो 80 प्रतिशत उत्सर्जन का प्रतिनिधित्व करता है,का दायित्व है कि वे एक साथ आएं और उत्सर्जन में कमी की गारंटी दें।जी-20 के साथ-साथ विश्व के वैश्विक उत्सर्जन में सबसे अधिक योगदान देने वाली कम्पनियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा: वर्तमान प्रवृत्ति को उलटने की उनकी स्पष्ट जिम्मेदारी है। अब यह कहने का समय आ गया है कि बस, बहुत हुआ।रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में स्तरों में औसतन 9.4 सेमी (3.7 इंच) की वृद्धि हुई है, लेकिन उष्ण कटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में यह आंकड़ा 15 सेमी तक ऊंचा था।श्री सिकुलु ने कहा, नेताओं के लिए, विशेषकर ऑस्ट्रेलिया और एओटेरोआ जैसे देशों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे स्वयं आकर इन चीजों को देखें, साथ ही हमारे लोगों के लचीलेपन को भी देखें। टोंगन संस्कृति का एक मुख्य हिस्सा हमारी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुश रहने की क्षमता है, और इसी तरह हम अपने लचीलेपन का अभ्यास करते हैं और मुझे लगता है कि इसे देखना और इसका गवाह बनना महत्वपूर्ण होगा।यह दूसरी बार है जब महासचिव गुटेरेस ने प्रशांत द्वीप समूह फोरम नेताओं की बैठक में भाग लिया है। इस वार्षिक बैठक में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड सहित 18 प्रशांत द्वीपों के नेता एक साथ आते हैं।जब नेता आधिकारिक उद्घाटन समारोह के लिए एकत्र हुए, तो भारी बारिश के कारण बड़े पैमाने पर बाढ़ आ गई। इसके तुरंत बाद, टोंगा क्षेत्र में 6.9 तीव्रता का भूकंप आया, जिसने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह कितना असुरक्षित है।2019 में, श्री गुटेरेस ने तुवालु की यात्रा की, जहाँ उन्होंने बढ़ते समुद्री स्तर के बारे में चेतावनी दी। पाँच साल बाद, उनका कहना है कि उन्होंने वास्तविकपरिवर्तन देखे हैं।उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की विफलताओं का हवाला दिया,विशेष रूपसे जबबात छोटे विकासशील द्वीप देशों की आती है।विकासशील देशों में अनुकूलन के लिए उपलब्ध धनराशि में वृद्धि के वादे किए जा रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि हम अभी भी उस आवश्यकता से बहुत दूर हैं, तथा उस एकजुटता से बहुत दूर हैं जो इन देशों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

— किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया