कविता

सांझ बेला

बागबां की साँझ बेला सुहानी, हृदय में हो आनंद झरना,

धुंधली अंखियों में जीवन प्रेम का हो उजियार सुहाना।।

थरथराते हाथों में थामो अपनापन लाठी,स्नेहिल विश्वास ,

मन मंदिर में सुख-शांति, प्रेम-झंकार, ऊष्मा-उल्लास ।।

भूलो न मात-पिता का प्रेम, वात्सल्य, प्यार से दुलारना,

जीवन पथ से ढूंढ-ढूंढ चुगना शूल-कंकड़, फूल बिछाना।।

बरसे स्नेह रस बूंदे सावन-सी, सहेजते नन्हें से तृण भी,

बागबां की ढलती उम्र-सा मुरझे न जीवन बाग कभी।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८