सांझ बेला
बागबां की साँझ बेला सुहानी, हृदय में हो आनंद झरना,
धुंधली अंखियों में जीवन प्रेम का हो उजियार सुहाना।।
थरथराते हाथों में थामो अपनापन लाठी,स्नेहिल विश्वास ,
मन मंदिर में सुख-शांति, प्रेम-झंकार, ऊष्मा-उल्लास ।।
भूलो न मात-पिता का प्रेम, वात्सल्य, प्यार से दुलारना,
जीवन पथ से ढूंढ-ढूंढ चुगना शूल-कंकड़, फूल बिछाना।।
बरसे स्नेह रस बूंदे सावन-सी, सहेजते नन्हें से तृण भी,
बागबां की ढलती उम्र-सा मुरझे न जीवन बाग कभी।।