कविता

यमराज का आफर

मेरे प्यारे भाइयों बहनों शुभचिंतकों
कुछ दुश्मन हैं तो दुश्मनों
आप सब मिलकर या चाहें तो फुटकर फुटकर
मेरा बहुत अहसान मानिए,
मेरी तारीफों के पुल बांधिए,
मेरी जय जयकार कीजिए।
क्या पता आपका भी कल्याण हो जाये,
मेरी तरह आपको भी विशेष आफर का लाभ मिल जाए।
वैसे तो आप स्वतंत्र हैं
चाहें तो मुझे कोस कोस कर मन हल्का कर सकते हैं
या गालियां देकल आत्म संतुष्ट हो सकते हैं।
पर मेरे हौसले की तारीफ तो कर ही सकते हैं।
क्योंकि! मैं वहां से लौटा हूँ, जहां से कोई नहीं लौटता,
पर वहाँ से भी मैं सकुशल लौटा हूँ।
आपके सर की कसम मरने जलने के बाद लौटा हूँ
जिनके साथ गया था, उनके बाद लौटा हूँ
बाँधकर बस की छत पर सामान की तरह 
चिलचिलाती धूप में ले जाया गया था,
लकड़ी के मचान पर लिटाया गया था
आग लगाकर राख बनने तक जलाया गया था,
जिनके साथ मैं श्मशान तक गया था, 
अब जब जलकर राख बन गया 
उन सबके वापस जाने की राह 
बड़ी धैर्य से देख रहा था,
क्योंकि मेरा अजीज यार यमराज 
अभी तक मेरी चिंता को घूर रहा था,
विशेष आफर के साथ मेरा इंतजार कर रहा था।
आखिर हम दोनों का धैर्य रंग ले ही लाया
और जब मैं पूरी तरह आजाद हो गया।
मेरा सबसे प्यारा यार यमराज मेरे पास आ गया
दोनों ने मिलकर खूब धमाल मचाया,
श्मशान में भी किसी की समझ में कुछ नहीं आया।
मैं गर्व से मुस्कराते हुए यमराज के साथ 
श्मशान से चलकर चौराहे पर आया,
दोनों ने साथ साथ चाय पिया, पान खाया
और चुपचाप यमराज के साथ 
अपने कथित घर लौट आया,
घर में महाभारत न हो यह समाधान पहले ही कर आया।
पर घर पर जो मैंने देखा
उससे मेरा सारा भ्रम दूर हो गया।
कोई एक भी वहाँ दुखी न था,
सब सामाजिक व्यवस्था व्यस्त थे
उन सबके ग़म महज दिखावे के थे।
यह देख यमराज ने मुझसे कहा-
प्रभु देख लिया न आपने सब कुछ अपनी आंखों से
अब बताइए कब तक आफर का लाभ लेना चाहेंगे?
कुछ मुझको भी बताएंगे,
या मेरी नौकरी की बलि चढ़वाएंगे।
आखिर मुझे भी तो वापस जाना है,
आप भी साथ चलेंगे या बाद में आयेंगे
अथवा इस आफर का लाभ किसी और को भी दिलाएंगे।
मैं थोड़ा झुंझलाया और यमराज को बताया
तेरे आफर ने मेरी आंखों से पर्दा हटाया।
तेरा आफर तुझी को मुबारक हो
तू अपना आफर अभी वापस ले लो,
और मुझे अपने साथ ही ले चल
बहुत आभार धन्यवाद होगा तेरा
अच्छा है जो सिर्फ मुझे ही
 इस विशेष आफर का लाभ दिलाया।
चल अब और देर न कर
दोनों संग संग यमलोक चलते हैं
जो भी धमा चौकड़ी करनी है, वहीं करेंगे,
मैं तुम्हें हमेशा की तरह
वहाँ भी अपनी कविता सुनाऊँगा, हँसाऊंगा, रुलाऊँगा
तेरे साथ अपना याराना पहले की तरह ही निभाऊंगा,
पर धरती पर कभी वापस न आऊँगा,
तेरे इस आफर का दर्द किसी और को नहीं होने दूंगा,
अपनी व्यथा कथा यमलोक में भी सुनाऊंगा,
तेरे विशेष आफर का लाभ लेने वाला
मैं पहला और आखिरी इंसान कहलाऊँगा,
इसके लिए तेरा गुणगान भी गाऊँगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921