कविता
दरवाजे पर कौन है?
मैं हूँ अपरिचित !
आपका यहाँ क्या काम?
अच्छा! मैं आगंतुक!
आइये,
स्वागत है|
भीतर आ जाइये
आचमन कीजिये
बैठिये,
जलपान कीजिये
कहिये!
प्रयोजन बताइये
प्रयोजन? प्रयोजन,
याचना है, प्रार्थना है
आगंतुक!
निः संदेह कहिये
कश्मीरी आँखो में
क्या छुपाया है?
जयपुरी कपोलों पर
क्या उभर आया है?
हृ.. हृ….हृदय की
अभिलाषा है
आगंतुक!
निश्चिंत रहिये
आप हृदय में ही
पधारे है!
— निशा अविरल