गजल
बेसलीकी जुबां से रिश्ते फट जाते हैं।
जोड़ लेने चाहिए रिश्ते जो कट जाते हैं
बेवजह ज़िद करने की आदत नहीं।
खुद ही चुपचाप पीछे हट जाते हैं।
धूप निकल आती है अपने आप।
गमों के बादल जब छट जाते हैं।
बार बार सी कर पहनती है अम्मा।
कपड़े जो अक्सर फट जाते हैं।
सर दर्द हैं तो गैरों से क्यों हमसे कहो।
हम खुद तेरे रास्ते से हट जाते हैं।
नहीं डरते इम्तिहान इश्क का देने से।
जो होता नहीं याद उसे रट जाते हैं।
— सुदेश दीक्षित