ग़ज़ल
खुद परस्ती की बात करता हूं।
तेरी हस्ती की बात करता हूं।
बुत परस्ती की बात करता हूं।
अपनी हस्ती की बात करता हूं।
आज बस्ती भी हुई वीरान है,
दिल की वस्ती की बात करता हूं।
बांध देती है हाथ बहुत के,
तंगदस्ती की बात करता हूं।
आज इन्सान की नहीं कीमत,
चीज सस्ती की बात करता हूं।
गज़ल की मदिरा पी रहा बालम
उसकी मस्ती की बात करता हूं।
— बलविन्दर बालम