गीतिका/ग़ज़ल

महाशय

धन्य-धन्य हैं आप महाशय।
झेल रहे संताप महाशय।

कोई सीख नहीं सुनता है
करें आत्मसंलाप महाशय।

बधिरों की शीर्षस्थ सभा में
भरते क्यों आलाप महाशय।

रोजी-रोटी की आशा में
सहते हैं अनुताप महाशय।

बढ़ती जाती निज परछाईं
रहे कदम से नाप महाशय।

निश्चित अंत बुरा होता है
फिर क्यों ढोते पाप महाशय।

अधिक न लेना आह प्रजा की
लग जाएगा शाप महाशय।

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

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