महाशय
धन्य-धन्य हैं आप महाशय।
झेल रहे संताप महाशय।
कोई सीख नहीं सुनता है
करें आत्मसंलाप महाशय।
बधिरों की शीर्षस्थ सभा में
भरते क्यों आलाप महाशय।
रोजी-रोटी की आशा में
सहते हैं अनुताप महाशय।
बढ़ती जाती निज परछाईं
रहे कदम से नाप महाशय।
निश्चित अंत बुरा होता है
फिर क्यों ढोते पाप महाशय।
अधिक न लेना आह प्रजा की
लग जाएगा शाप महाशय।
— गौरीशंकर वैश्य विनम्र