कविता

जिंदगी की सच्चाई

जिंदगी है मिली चार दिन की महज़ ।
शुक्र कुछ तो ख़ुदा का अदा कीजिए ।।
जिसने बनाई हमारे लिए ये खूबसूरत दुनिया ।
कलाकारी को उसकी सुरभित तो रखा कीजिए ।।

समय पर भरोसा करें कोई क्या,
ये ठहरता नहीं है कभी किसी के लिए ।
कर लो यहां नेकी के कुछ काम,
दोबारा जिंदगी मिलती नहीं बंदगी के लिए ।

शब्दों के जहरीले बाण मत छोड़िए,
वाणी को थोड़ा मधुरतम रखा कीजिए ।
हाथ में लेकर नमक फिरते हैं यहां सभी,
अपने ज़ख्म ऐसे मत दिखाया कीजिए ।

प्यार लुटाते चले हम उम्र भर सभी के लिए,
आई जब हमारी बारी तो सब खाली हो चुके थे ।
“आनंद” भीतर जगाना सीख लिया हे परमेश्वर !,
अब जिंदगी तेरे नाम के प्रताप से प्रकाशित हो रही ।

— मोनिका डागा “आनंद”

मोनिका डागा 'आनंद'

चेन्नई, तमिलनाडु