कविता

माता रानी

माता रानी आप पधारो। जग के सारे कष्ट निवारो।।
पाप – अधर्म बहुत है होता। होकर दुखी है सज्जन रोता।।
अब तो आप धरा पर आओ। सभी अधर्मी मार गिराओ।।
तुमको ही कुछ करना होगा। मानव के दुख हरना होगा।।
नहीं और से आस बची है। गम की नई लकीर खिंची है।।
मैया मेरी आप बताओ। हमको नूतन मार्ग दिखाओ।।
आखिर ऐसा क्यों होता है? आखिर धर्म कहाँ सोता है।।
होते अब अधर्म बहुतेरे। पाप कर्म अब रहते घेरे।।
मातृशक्ति हर चीख रही है। पूँछ रही क्या ग़लत सही है।।
अपना अस्त्र उठाओ माता। जोड़ो इनसे अपना नाता।।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921