कविता

प्रार्थना

बहुत शुक्रिया, प्रभु जी आपका
एक दिन और, प्रदान किया
सोचने-समझने की, शक्ति हमें दी
नवजीवन का, वरदान दिया।।

उगता हुआ सूरज, फिर से देखा
चिड़ियों की , चहचहाहट सुनी
देख प्रकृति का, अनुपम सौंदर्य
कल्पनाओं ने नयी, उड़ान बुनी।।

बस इतनी कृपा, और करियेगा
नकारात्मकता, सब, हर लेना
कुत्सित विचार कोई,जगे न मन में
शुद्धता ह्रदय में, भर देना।।

जब भी कुछ सोचूं, अच्छा सोचूं
बुराई से , कोसों दूर रहूं
भला कुछ , कर सकूं, तो अच्छा
पर मैं में न, चकनाचूर रहूं।।

शुभ कार्यों में, बीते, आज का दिन
अहित न, किसी का, हो मुझसे
धर्म मार्ग पर, रहूं मैं अग्रसर
बस इतनी सी, विनती है तुमसे।।

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह से
अब न , सामना करवाना
सद्कार्यों में लगे, तन, मन, धन
आलस्य से, पीछा छुड़वाना।।

कुछ अपने को भी, जान सकूं यदि
तो लक्ष्य, पूर्ण हो जाएगा
क्यों व्यर्थ, भटकता, रहता है मन
कब खुद से, मिलन हो पाएगा ।।

क्यों व्यर्थ, भटकता, रहता है मन
कब खुद से, मिलन हो पाएगा ।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई